
सब इत्मीनान जायज है मोहब्बत में। उनका आना और उसी सादगी से चले भी जाना।
शिकायतें बेहद और बेशक हमारी थी, लेकिन गलती उनकी हो जरूरी तो नहीं था।
जिम्मेदारी उस कामयाब पल की नहीं थी, ये रिश्ता
कितने टूटे पलों से टूट गया था।
आज अर्सो के बाद उनके यूंही पहली नजर से मुलाकात हुई थी।
बहुत दिनों से यादों में अटकी सांस ने सिसक छोड़ी थी,
बहुत दिनों तक रुकी हुई मुलाकात आज बेजान सही नई लगी थी।
लेकिन कुछ मुलाकातों की उम्र क्यों ना बड़ी हो, लेकिन कमजोर होती हैं।
यादें चाहें कितनी भी सच्ची हो, रिश्ता बेजान था।
बुनियाद क्यों ना झूठ थी, लेकिन ताक़त यह मोहब्बत की थी,
मंजिले आज कितनी भी अलग क्यों ना हो,
कल हम एक थे यह झूठ कोई ठुकरा नहीं सकता।
- Pooja Dheringe
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