तू कलाकार बड़ा श्रेष्ठ हैं।

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तू विघ्न बनाता है,
तुही विघ्न का विनाश करता है।
इन इंसानों के बीच शान से खड़े रहकर,
जिंदगी को संभालने की हिम्मत देता हैं।

फिर भी ना जाने क्यों,
तुझमें भी यह इंसान कम ज्यादा, उच्च नीच की भावना रखता हैं।

अक्सर कहा जाता है,
तूने इंसान बनाया है,
फिर कौनसा भगवान अपने ही बनाए कला को दुजाभाव सिखाता है?

अक्सर कहता हैं,
तू भी जिंदा नहीं,
क्या कौनसी मूरत अपने मालिक की पहचान मिटाती है?


एक बात तो बता, ए बप्पा तू।

क्या सच में अपने ही बनाए कलाकृति में,
तूने इतनी लालसा, इतना अहम भाव डाला है?
यह कौनसा तारकासुर तूने इंसानों के मूरत में डाला है?

लगता है कभी कभी, एक पवित्र दिन तूही दैत्य बनकर, इंसान को तुम्हारे जैसा क्यों बना नहीं देता।

अगर पीताम्बर नीला हो, तो ये जयभीम कह देता हैं।
अगर केसरी रंग आगमन में उछालो तो हिन्दू का सिक्का लगाता हैं।
थोड़ा कहीं करागिर हरा रंग सोवले को देता है,
सभी मूर्तियां बिक जा कर, अल्लाह का रंग कह कर उस मूरत को धर्मों में बाट देता है।

मैं हर बार सोचती हूं,
सब के बीच खड़ा हर इंसान कौनसे रंग का होता है?
बड़े अहंकार से दूजाभाव करता है।

लेकिन एक बात उसमे खास है,
कुछ नहीं भी हो लेकिन ए बाप्पा तू अपने आगमन के साथ हर एक को समभाव से धुंद करा देता हैं।

तब मैं सोचती हूं,
अच्छी हैं ईद, अच्छी हैं क्रिसमस और इसी वजह से अच्छा हैं बाप्पा तू भी।
कभी नहीं तो ऐसे मौकों पर , ये अहंकार बना इंसान एकदूजे से पूरा, इकदुजे में धूंद इकदूजे में संतुष्ट हो जाता हैं।

तूने इंसान की मूरत बनाई,
हर बार इंसान तेरी मूरत बनाता है।
कौनसी कला का जश्न इतना बड़ा होता हैं?

एक बात समझदारी की तुम्हे बतानी हैं बाप्पा,
थोड़ा अपने कला को संभाल,
अगर इंसान तूने बनाया है,
तो थोड़ा समभाव और थोड़ी इंसानियत का रंग बेझिजक उसमे जीवित करा।
क्योंकि
तू कलाकार बड़ा श्रेष्ठ हैं, तू इंसानों में मस्त है।
वैसे ही इंसान इंसानियत में जजता हैं, मत भेदों में वो सिर्फ खिलौना लगता है।

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