काफ़िर

चलो चलो मोहब्बत हो गई,
शक का दौर शुरू हो गया।
सच कहूं दोनों के बीच कोई और आ गया।

कितने मोहब्बत पर गाने बरसाए,
कोई लिखें तो बताओ इस शक की सुई पर।

दिखाई देती कहां हैं, चुभती जाती हैं।
दोनों साथ होते हैं चुभन बढ़ती जाती हैं।

समझ नहीं पाते मोहब्बत तो हैं,
फिर क्यों दूरियां बढ़ रही है,
जान तो डाल रहे लेकिन,
टूट क्यों रहे हैं?

फिर भी दोनों एक दूजे से पूछ भी लेते हैं,
उसे बुरा लगेगा कह कर झूठ का साया ले लेते हैं।

शक बढ़ता जाता है,
सुई अब मोहब्बत से ज्यादा शोर करने लगती हैं,
किन्तु परन्तु का सब खेल आंखों के सामने होता हैं।

दिल की चीख नजरअंदाज किए,
दिमाग से मोहब्बत करने लगती हैं,
उसे तभी खो देती हैं जब वो शक लेती हैं।

थोड़ी कद्र शक पैदा करने वालो से ज्यादा,
मोहब्बत की कर लेते,
तुम काफ़िर से अच्छा आशिक बन लेते।
कोई नुकसान तुम्हारा होगा नहीं,
मोहब्बत का मजाक कई साल चलता रहेगा।

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